what is Kahar ? in ancient History ? This information is available through Different Organizations and internet.

नमस्कार साथियों, जानकारी का आभाव कभी भी किसीको भी कहीं भी हो सकता है इस दुनिया में कोई भी जानकारी सम्पूर्ण और पर्याप्त नहीं है परिवर्तन के साथ सब कुछ बदलता रहता है |
 
 जैसा की आप सभी जानते है. हमारा समाज कई जातियों में बटा हुआ है . जिससे हमारे समाज,समुदाय,की रहन सहन ,खान पान एवं जीवन शैली में बहुत अलगाव देखने को मिलता है. जिससे हमें भ्रान्तिया मिलती है. और सही क्या है. इसका पता लगाने में वर्षो लग जाते है . कई किस्सों में अक्सर लोगों की मौत भी हो जाती है. जिससे वह जानकारी अधूरी रह जाती है और लोगों तक पहुचती भी नहीं है .
ऐसे बहुत से सामाजिक संसोधन कर्ताओ ने मेहनत की और कुछ थोड़ी थोड़ी जानकारियां लोगो तक किसी किताब के माद्यम से , विडियो के माध्यम से , लोकगीतों के माध्यम से, और आज इन्टरनेट के माध्यम से लोगो तक पहुचाने की कोशिस की . ऐसे ही सभो माध्यमो से मिली सभी जानकारियों को हम एक कड़ी से दूसरी कड़ी जोड़ते हुए आप सभी के पास भेजेंगे आशा ही नहीं आपकी समझ शक्ति  पर पुरा  भरोषा है आप भी इन सभी जानकारियों को लोगो तक पहुचाएंगे.आप से निवेदन है अपने सुझाव हमें ईमेल के माध्यम से भेजे और कमेंट करके सवाल भी पूछे जिससे हमें पता चले आप को अभी कौनसी जानकारी देना ज्यादा जरुरी है.

साथियों अभी तक की प्राचीनतम जानकारी में हमने पाया की जब जातियों की रचना नहीं हुयी थी  तब हम (कहार) नाग वंशी समुदाय से थे जिसके प्रमाण निम्न दिए गए है |

नागवंशी भारत का और  मानवता का पहला समाज

नागवंश प्राचीन काल का एक राजकुल था। इस वंश के कुछ सिक्कों पर बृहस्पति नाग, देवनाग और गणपति नाग नाम लिखे प्राप्त हुए हैं। नागवंश का शासनकाल 150 से 250 विक्रम संवत के मध्य जान पड़ता है।
प्रामाणिकता
प्राचीन काल में नागवंशियों का राज्य भारत ओर भारत देश के बाहर कई स्थानों में तथा सिंहल में भी था। इतिहास में स्पष्ट लिखा है, कि सात नागवंशी राजा थे। उसके पीछे गुप्त राजाओं का राज्य होगा। नौ नाग राजाओं के जो पुराने सिक्के मिले हैं, उन पर 'बृहस्पति नाग', 'देवनाग', 'गणपति नाग' इत्यादि नाम मिलते हैं। ये नागगण विक्रम संवत 150 और 250 के बीच राज्य करते थे। इन नव नागों की राजधानी कहाँ थी, इसका ठीक पता नहीं है, पर अधिकांश विद्वानों का मत यही है कि उनकी राजधानी 'नरवर' थी। मथुरा और भरतपुर से लेकर ग्वालियर और उज्जैन तक का भू-भाग नागवंशियों के अधिकार में था। नागवंशी पूरी भारत मे फैला था।
नाग कुल की भूमी
यह सभी नाग को पूजने वाले नागकुल थे इसीलिए उन्होंने नागों की प्रजातियों पर अपने कुल का नाम रखा। जैसे तक्षक नाग के नाम पर एक व्यक्ति जिसने अपना 'तक्षक' कुल चलाया। उक्त व्यक्ति का नाम भी तक्षक था जिसने राजा परीक्षित की हत्या कर दी थी। बाद में परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने तक्षक से बदला लिया था।
'नागा आदिवासी' का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।
पुराणों अनुसार एक समय ऐसा था जबकि नागा समुदाय पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) के शासक थे। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। 
नाग और नाग जाति
जिस तरह सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और अग्निवंशी माने गए हैं उसी तरह नागवंशियों की भी प्राचीन परंपरा रही है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। ये लोग सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए। कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं। 
एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का 'अनंतनाग' इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। नाग वंशावलियों में 'शेष नाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।



 
शहर और गांव
नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव 'नाग' शब्द पर आधारित हैं। मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा।

 नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। महार जाति के आधार पर ही महार+राष्ट्र से महाराष्ट्र हो गया। महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी।जो 1891 की जनगणना के बाद कहार की 15 उप जातीयों में से एक है  

इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में 'नागदाह' नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे। उक्त स्थान से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। नगा या नागालैंड को क्यों नहीं नागों या नागवंशियों की भूमि माना जा सकता है। 

महार बटालियन :- पाकिस्तान का रिटायर्ड मेजर जनरल मुकीश खान ने अपनी पुस्तक*
'Crisis off Leadership’ में लिखा है कि, भारतीय सेना का एक अभिन्न अंग होते हुए भी, भारतीय सेना महारों के शौर्य से अंजान ही रही क्योंकि…..’घर की मुर्गी दाल बराबर !’ भारतीय सेना को महारों की वीरता से कभी सीधा वास्ता नही पड़ा था ! दुश्मनों को पड़ा था और उन्होंने इनकी शौर्य गाथाएं भी लिखी! स्वयं पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल मुकीश खान ने अपनी पुस्तक 'Crisis of Leadership’ के प्रष्ट २५० पर,



शेष अगले भाग में

Comments

  1. દિલીપ ભાઈ ફોટા બહુ નાના છે મો માં જોવાતા નથી જાણકારી સરસ છે . અભાર

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