in Medieval part 1 Histry of Kahar. in bramhin conspiracy, when we divide each state separatly? why/ and how????
जैसा की आप ने प्राचीन इतिहास मे समाज की अंशतः जानकारी अर्जित की। आज हम मध्यकालीन इतिहास की जानकारी पर आगे बढ़ेंगे, जो एक भाग मे समाहित करना संभव नहीं है। इसीलिए इसे कुछ भागो मे प्रस्तुत कर रहा हु।
आगे आप सभी ने जाना। हम सभी 1891 की जनगणना के समय निम्न 15 जातियो के समूह को कहार के रूप मे ब्रिटिश सरकार ने अपने पहले सेन्सस मे दर्ज किया । जिसमे 1.Gharuk, 2. Boat, 3. Dhinwar or Dhimer, 4. Raikwar, 5. Batham, 6. Gondiya Or Gonr, 7. Jaishwar, 8. Kamkar, 9. Kharwar, 10. Mahar, 11. Mallah, 12.Rawani, 13. Singhariya, 14. Turai, 15. Dhuria, 16. Gound.........लेकिन इसकी जानकारी हमारे समुदाय को नहीं थी । या यू कहे की हमारे अशिक्षित होने की वजह से हमे पता ही नहीं चला, की हमारी सरकारी कागजो मे क्या स्थिति है??? और हमे आगे किस प्रकार आगे बढ़ना है??? जिसके फलस्वरूप हम ब्राह्मणो, ठाकुरो,जमींदारो, बनियो,और गाँव व अपने आस पास के आगेवानों के भरोसे पर चलने लगे। और आशिक्षित होने की वजह से जिसने जो बताया हम उसे सही मानने लगे जिसमे सवर्ण जातियो ने हमे कभी असलियत नहीं बताई । और हमे बर्गलाते हुये अपने मतलब के लिए हमे समाज के बीच अपने साथ रखा जिसमे एक षणयंत्र था। जिसे हम मेसे 90% लोग आज भी नहीं समझ पाये । मैं आपको उसके बारे मे अगले भाग मे विस्तार से बताऊंगा। और इन सब से हमारा अस्तित्व बिखरता गया। और हम टुकड़ो मे बटते गए।
सामाजिक असमानता होने की वजह से, हमारे समाज के बुद्धजीवी लोग गांवो को छोडकर रोटी,कपड़ा,मकान,शिक्षा के साथ, अपने व बच्चो के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए शहरो की तरफ बढ्ने लगे। नतिजन हम विकास की दौड़ मे अपनों से दूर होते चले गए । जैसा देश वैसा भेष बनाकर नई जगह की बोली, भाषा व संस्कृति को अपनाते गए। और अपना अस्तित्व भूलते गए जिससे नई पीढ़िया तो जान ही नहीं पायी की उनका असली अस्तित्व कब? कहा? कैसे गायब हो गया ? हमारा समाज पहले से ही ईमानदार, मेहनति, भरोशेमंद, प्राक्रमि व साहसी रहा है। (जिसे हम अगले भाग मे देखेंगे)और यह इतिहास के सुनहरे पन्नो मे दर्ज भी है । जिसका पलायन कर चुके सभी लोगो को नई जगह भरपूर फायदा हुआ जिससे पलायन कर चुके स्वजातीय बंधुओ को आसानी से काम और नाम के साथ दाम भी औरों की अपेक्षा ज्यादा मिलने लगा।
और पलायन कर चुके लोगो ने सामाजिक असमानता के बीच फसे समाज को भूलना ही बेहतर समझा । और कभी सरकार की तरफ से मिलनेवाले आरक्षण की तरफ भी नहीं सोचा । जिसमे सरकारी नीतियो ने भी उन्हे अपने अस्तित्व को भूलने व छोडने पर मजबूर किया। क्यूकी सामाजिक व सरकारी आरक्षण का लाभ सिर्फ उसी राज्यो मे मिलता है । जहा के वे वंसज है अन्य राज्यो मे उनकी सामाजिक स्थिति का मूल्यांकन राज्यो पर निर्भर था और पहले प्राथमिकता अपने राज्य के नागरिकों को देना यह संवैधानिक अधिकार सभी राज्यो को उनके मूलभूत अधिकारो के अंतर्गत आता है जिससे दूसरे राज्य के आरक्षित नागरिक भी आरक्षण से वंचित रह जाते है।
प्रमाण के तौर पर आप इस लिंक पर जाकर पढे। https://www.thehindubusinessline.com/news/national/sc-st-members-from-one-state-cant-claim-quota-in-another-rules-apex-court/article24822688.ece
समय के साथ अपनी असली पहचान को बदलते गए। जिससे वे जिस राज्य मे वर्षो से रह रहे है। उसमे उनका अस्तित्व बन सके। इसी प्रकार एक ही समुदाय व समाज के लोग अलग अलग राज्यो मे अलग अलग नामो से पहचाने जाने लगे। जिसमे बुद्धजीवी लोग तो जहाँ रहे ,वही के अपने समाज के लोगो से जुड़कर वही के हो गए। लेकिन ऐसे लोगो की संख्या कम होने से राष्ट्रिय व राजकीय स्तर पर हमारे समुदाय के लोगो को किसि भी प्रकार का लाभ नहीं मिला। और इस समाज के लोगो को किसि भी राजनीतिक पार्टियो ने कोई अधिकार देने मे मदद नहीं की । नतिजन यह कहार समाज राष्ट्रिय व राजकीय स्तर पर हर तरफ से खोता चला गया और आज विलुप्त होने की स्थिति मे है ।
ऐसा नहीं की समाज के बुद्धजीवी लोगो ने संगठनात्मक कार्य नहीं किए। कई राज्य ऐसे है जहा कहारो की संख्या ज्यादा है । और प्रशासन के सामने अपनी माँग रखने पर सफल भी हुये। वे सफल तो हुये लेकीन सामाजिक पहचान बदल गयी जैसे ... उत्तरप्रदेश मे कहार,, बिहार मे चंद्रवंशी ,गुजरात व महाराष्ट्र मे भोई,कहार मध्यप्रदेश मे मांझी ,मच्छुआ ,रैकवार, राजस्थान मे , कहार अन्य राज्यो मे ऐसे शब्द है की जिसे सुनना और बोलना भी मुश्किल है जैसे पंडूरे ,परसैया लखीरे इतियादी नामो से आरक्षण प्राप्त करने मे सफल भी हुये और इसी प्रकार भारत के अन्य राज्यो मे भी अलग अलग नामो से आरक्षित तो हुये लेकिन सभी राज्यो मे राज्यो के सामाजिक, भौगोलिक व आर्थिक स्थिति के आधार पर हम एससी,एसटी ,ओबीसी ,और सामान्य के साथ विमुक्त भटकती जातियाँ जैसी सभी केटेगरी मे बट गए जिससे राष्ट्रीय सामाजिक पहचान खतम हो गयी है।
जब राष्ट्रीय पटल पर हमारी सामाजिक पहचान ही नहीं तो सामाजिक एकता होना भी संभवतः स्वतः ही खत्म हो गयी है। और शायद सरकार भी इन्हे एक नहीं होने देना चाहती क्यूकी मै पहले ही बता चुका हु की कहार जाती के लोग बहुत ही ईमानदार, मेहनति, भरोशेमंद, प्राक्रमि व साहसी रहे है जो इतिहास के सुनहरे पन्नो मे दर्ज है । जिसकी जानकारी हम अगले भाग मे जानेंगे। धन्यवाद
आगे आप सभी ने जाना। हम सभी 1891 की जनगणना के समय निम्न 15 जातियो के समूह को कहार के रूप मे ब्रिटिश सरकार ने अपने पहले सेन्सस मे दर्ज किया । जिसमे 1.Gharuk, 2. Boat, 3. Dhinwar or Dhimer, 4. Raikwar, 5. Batham, 6. Gondiya Or Gonr, 7. Jaishwar, 8. Kamkar, 9. Kharwar, 10. Mahar, 11. Mallah, 12.Rawani, 13. Singhariya, 14. Turai, 15. Dhuria, 16. Gound.........लेकिन इसकी जानकारी हमारे समुदाय को नहीं थी । या यू कहे की हमारे अशिक्षित होने की वजह से हमे पता ही नहीं चला, की हमारी सरकारी कागजो मे क्या स्थिति है??? और हमे आगे किस प्रकार आगे बढ़ना है??? जिसके फलस्वरूप हम ब्राह्मणो, ठाकुरो,जमींदारो, बनियो,और गाँव व अपने आस पास के आगेवानों के भरोसे पर चलने लगे। और आशिक्षित होने की वजह से जिसने जो बताया हम उसे सही मानने लगे जिसमे सवर्ण जातियो ने हमे कभी असलियत नहीं बताई । और हमे बर्गलाते हुये अपने मतलब के लिए हमे समाज के बीच अपने साथ रखा जिसमे एक षणयंत्र था। जिसे हम मेसे 90% लोग आज भी नहीं समझ पाये । मैं आपको उसके बारे मे अगले भाग मे विस्तार से बताऊंगा। और इन सब से हमारा अस्तित्व बिखरता गया। और हम टुकड़ो मे बटते गए।
सामाजिक असमानता होने की वजह से, हमारे समाज के बुद्धजीवी लोग गांवो को छोडकर रोटी,कपड़ा,मकान,शिक्षा के साथ, अपने व बच्चो के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए शहरो की तरफ बढ्ने लगे। नतिजन हम विकास की दौड़ मे अपनों से दूर होते चले गए । जैसा देश वैसा भेष बनाकर नई जगह की बोली, भाषा व संस्कृति को अपनाते गए। और अपना अस्तित्व भूलते गए जिससे नई पीढ़िया तो जान ही नहीं पायी की उनका असली अस्तित्व कब? कहा? कैसे गायब हो गया ? हमारा समाज पहले से ही ईमानदार, मेहनति, भरोशेमंद, प्राक्रमि व साहसी रहा है। (जिसे हम अगले भाग मे देखेंगे)और यह इतिहास के सुनहरे पन्नो मे दर्ज भी है । जिसका पलायन कर चुके सभी लोगो को नई जगह भरपूर फायदा हुआ जिससे पलायन कर चुके स्वजातीय बंधुओ को आसानी से काम और नाम के साथ दाम भी औरों की अपेक्षा ज्यादा मिलने लगा।
और पलायन कर चुके लोगो ने सामाजिक असमानता के बीच फसे समाज को भूलना ही बेहतर समझा । और कभी सरकार की तरफ से मिलनेवाले आरक्षण की तरफ भी नहीं सोचा । जिसमे सरकारी नीतियो ने भी उन्हे अपने अस्तित्व को भूलने व छोडने पर मजबूर किया। क्यूकी सामाजिक व सरकारी आरक्षण का लाभ सिर्फ उसी राज्यो मे मिलता है । जहा के वे वंसज है अन्य राज्यो मे उनकी सामाजिक स्थिति का मूल्यांकन राज्यो पर निर्भर था और पहले प्राथमिकता अपने राज्य के नागरिकों को देना यह संवैधानिक अधिकार सभी राज्यो को उनके मूलभूत अधिकारो के अंतर्गत आता है जिससे दूसरे राज्य के आरक्षित नागरिक भी आरक्षण से वंचित रह जाते है।
प्रमाण के तौर पर आप इस लिंक पर जाकर पढे। https://www.thehindubusinessline.com/news/national/sc-st-members-from-one-state-cant-claim-quota-in-another-rules-apex-court/article24822688.ece
समय के साथ अपनी असली पहचान को बदलते गए। जिससे वे जिस राज्य मे वर्षो से रह रहे है। उसमे उनका अस्तित्व बन सके। इसी प्रकार एक ही समुदाय व समाज के लोग अलग अलग राज्यो मे अलग अलग नामो से पहचाने जाने लगे। जिसमे बुद्धजीवी लोग तो जहाँ रहे ,वही के अपने समाज के लोगो से जुड़कर वही के हो गए। लेकिन ऐसे लोगो की संख्या कम होने से राष्ट्रिय व राजकीय स्तर पर हमारे समुदाय के लोगो को किसि भी प्रकार का लाभ नहीं मिला। और इस समाज के लोगो को किसि भी राजनीतिक पार्टियो ने कोई अधिकार देने मे मदद नहीं की । नतिजन यह कहार समाज राष्ट्रिय व राजकीय स्तर पर हर तरफ से खोता चला गया और आज विलुप्त होने की स्थिति मे है ।
ऐसा नहीं की समाज के बुद्धजीवी लोगो ने संगठनात्मक कार्य नहीं किए। कई राज्य ऐसे है जहा कहारो की संख्या ज्यादा है । और प्रशासन के सामने अपनी माँग रखने पर सफल भी हुये। वे सफल तो हुये लेकीन सामाजिक पहचान बदल गयी जैसे ... उत्तरप्रदेश मे कहार,, बिहार मे चंद्रवंशी ,गुजरात व महाराष्ट्र मे भोई,कहार मध्यप्रदेश मे मांझी ,मच्छुआ ,रैकवार, राजस्थान मे , कहार अन्य राज्यो मे ऐसे शब्द है की जिसे सुनना और बोलना भी मुश्किल है जैसे पंडूरे ,परसैया लखीरे इतियादी नामो से आरक्षण प्राप्त करने मे सफल भी हुये और इसी प्रकार भारत के अन्य राज्यो मे भी अलग अलग नामो से आरक्षित तो हुये लेकिन सभी राज्यो मे राज्यो के सामाजिक, भौगोलिक व आर्थिक स्थिति के आधार पर हम एससी,एसटी ,ओबीसी ,और सामान्य के साथ विमुक्त भटकती जातियाँ जैसी सभी केटेगरी मे बट गए जिससे राष्ट्रीय सामाजिक पहचान खतम हो गयी है।
जब राष्ट्रीय पटल पर हमारी सामाजिक पहचान ही नहीं तो सामाजिक एकता होना भी संभवतः स्वतः ही खत्म हो गयी है। और शायद सरकार भी इन्हे एक नहीं होने देना चाहती क्यूकी मै पहले ही बता चुका हु की कहार जाती के लोग बहुत ही ईमानदार, मेहनति, भरोशेमंद, प्राक्रमि व साहसी रहे है जो इतिहास के सुनहरे पन्नो मे दर्ज है । जिसकी जानकारी हम अगले भाग मे जानेंगे। धन्यवाद
Sir this is very informative blog for our community... So you keep it up very well....
ReplyDeleteBest of luck
Sir, welcome you. This blog is in the starting phase, which is not known to the public at the moment. But when you get cooperation with people like you, we will be able to see this priceless information from the people. For which you can tell people using the Like Share and Comment Thank you
DeleteSir background is very dark and font is very light so change this communication for better result...
ReplyDeletethanks to given your valuable suggestion
Deleteमुझे लगता है कि यह पोस्ट सभी लोगों को पढ़ना चाहिए ताकि उन्हें अपने कहार समाज के बारे मे अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त हो सके और वे समाज के हित में एक अच्छा कदम उठा सकें।।। जिससे हमारा यह समाज और भी ससक्त व मजबूत बन सके।।।
ReplyDeleteनमस्कार आपके विचार साझा करने हेतु धन्यवाद कृपया अपना परिचय भी देते रहे और अमूल्य सुझाव व जानकारियो का आदान प्रदान भी करे।और यहा से मिली जानकारी अपने सभी जान पहचान रिश्तेदार व मित्रो को लिंक,शेर,और लाइक के माध्यम से भेजे
Delete